अनुभूति में
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रावण के राज में
वायदों की छुरी
संयुक्त परिवार
संसद
साइज़
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प्रमुख चरण
लगाएँ सत्य पर ग्रहण
करें झूठ का वरण
सरकारी खज़ाने का चीर हरण
चुनाव हारें तो मरण,
जीते तो कुंभकरण
यही दो है देश के
नेताओं के जीवन के
प्रमुख चरण
राजनीति
राजनीति की गलियाँ
बड़ी संकरी हो गई है,
आम जनता खूँटे से बँधी
बकरी हो गई है,
चुनाव के त्यौहार तक
मतदान के वार तक
खिला-पिलाकर
लाल करते हैं,
वायदों की छुरी से
हलाल करते हैं।
महंगाई पे हास्य
घनघोर महंगाई का दौर
चलते हैं सब्ज़ीमंडी की ओर
फ़िल्मी दुनिया-सी
महंगी नज़र आती है,
आलू डैनी की तरह
आँखें दिखाता है,
गोभी भिंडी
ऐश्वर्या की तरह
कजरारे-कजरारे गाती है,
लेने जाओगे
दूर खिसक जाएगी,
आप कोई अभिषेक बच्चन
नहीं हो जो आपके पास आएगी।
सस्ताई पे व्यंग्य
जान की कीमत चंद नोट
नोटों से बिकते हैं अनमोल वोट
रद्दी के भाव, शहीदों की तस्वीरें
नैतिक मूल- औंधे मुँह गिरे
कोई लेने वाला नहीं ईमान को
ईमानदारी फोकट
सड़ रही है,
फिर कौन कहता है,
महंगाई बढ़ रही है।
२२ सितंबर २००८ |