तीन छोटी कविताएँ
बस चल रही है
सब तरफ घपले-घोटाले,
टेलीफोन से लेकर
चारे तक हर आइटम खाले,
गरीबों की भैंस पानी में
अमीरों की दाल गल रही है,
सरकारें चलती नहीं
बस चल रही है!
राजनीति
त्याग नहीं
सुविधा है
मूर्ख बनाने की
विधा है।
चिकने घड़े
गरीबों के घड़े
सूखे पड़े हैं,
हम उन्हें मितव्ययी
बनाने पर अड़े हैं,
कौन पचड़े में पड़े
नेता सारे
चिकने घड़े हैं। |