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उगते सूरज को
उगते सूरज को करते रहे तुम नमन
साँझ ढलने की हमने कहानी लिखी।
तुम प्रणय गीत रचते रहे उम्र भर,
दर्द के नाम हमने जवानी लिखी।
आस्था का रुदन तुमने देखा नहीं,
चाँद में प्रियतमा को तलाशा किए,
हम कलम से सदा पीर पाषाण की,
कोरे कागज़ पे बुत सी तराशा किए,
अर्थ के शास्त्र तुमने लिखे नित नए,
पीर हमने ग़ज़ल की जु़बानी लिखी।
तुमको यौवन की अठखेलियाँ भा गईं,
हमने देखा है बचपन सिसकते हुए,
तुम तो खोए रहे रूप बाजा़र में,
उम्र को हमने देखा घिसटते हुए,
जिस्म कमसिन से तुमको खिलौने लगे,
हमने रोती हुई गुडि़या रानी लिखी।
तुम स्वयम्बर के छन्दों में उलझे रहे,
ये न जाना कि सीता हरण हो गया,
हमने पत्थर शिला पर लिखा राम तो,
ये समझ लो अह्ल्याकरण हो गया,
तुम तो राधा की धारा में बहते रहे,
दर्द की हमने मीरां दीवानी लिखी।
१९
जुलाई २०१० |