चूड़ियाँ
चूड़ियाँ मुझको तब लुभाती हैं,
जब अनायास ही बज जाती हैं।
एक संगीत की सी स्वर लहरी,
जैसे कि मन में उतर जाती है।
मुझको वो खनखनाहट भाती है,
माँ के हाथों से जब भी आती है।
जब बनाकर वो प्यार से खाना,
अपने हाथों से खुद खिलाती है।
मुझको वो खनखनाहट भाती है।
मुझे वो खनखनाहट भाती है,
चाहे वो दूर से ही आती है।
राखियाँ बाँधकर मेरी बहना,
आँख से नीर छलछलाती है।
मुझे वो खनखनाहट भाती है।
मुझे वो खनखनाहट भाती है,
हर समय मन को गुदगुदाती है।
जब भी आता हूँ मैं थका हारा,
बेटी सीने से लिपट जाती है।
मुझे वो खनखनाहट भाती है।
मुझे वो खनखनाहट भाती है,
मौन है फिर भी कुछ तो गाती है।
अलसुबह रोज़ जब प्रिया मेरी,
नहा के तुलसी को जल चढ़ाती है।
मुझे वो खनखनाहट भाती है।
२९
मार्च २०१० |