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दीपावली महोत्सव
२००४
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Ñ1
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तारों के दीपक धरे नील गगन के
थार
आज धरा से व्योम तक दीपों का त्यौहार
प्रेम दिया ऐसे जले प्रीत प्यार के संग
मन ड्यौढी पर काढ़ लें रंगोली के रंग
अपनी देहरी सब करें दीपों की भरमार
एक दिया तो स्नेह का रख पड़ोस द्वार
नयनों से नैना मिलें दीपक जलें हज़ार
मन द्वारे पर बाँध दी किसने बंदनवार
नेह दिया ले हाथ में कर दुल्हन शृंगार
रूप फुलझड़ी जल उठी मन में छुटे अनार
कोख अमावस की लगा हो जाएगी बाँझ
अँधियारे का पाहुना चला जाएगा साँझ
— आर .सी .शर्मा ‘आरसी’ |
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प्रीत दीप
मेरी स्मृतियों के
नन्हें झिलमिलाते दीप
चारों ओर से घेरे,
धीमे धीमे जगमगाते,
प्रकाशित, नव आशा का
कर रहे संचार
दीपावली आई खुशियों भरी,
चमक रहीं आँखें भीं,
बंद कर लूँ मैं,
पलकों को और कैद कर लूँ
खुशियों को
दे दूँ उन्हें, "उमर–कैद"
फिर जब होगी मेरे जीवन की
कोई एक, परिपक्व साँझ
याद करूँगी और देखूँगी दीपों में
दीपावली की सुमधुर याद
—लावण्या शाह |