अनुभूति में
पंकज परिमल
की रचनाएँ—
अंजुमन में-
इक किताब
झोंका छुए कोई
तितलियाँ रख दे
नहीं होता
रूठ जाता है
गीतों में—
आज जहाँ रेतीले तट हैं
आज लिखने दो मुझे कविता
इस जीवन में
काँटे गले धँसे
कागा कंकर चुन
जड़ का मान बढ़ा
जितना जितना मुस्काए
पत्र खोलो
रस से भेंट हुई
सपना सपना |
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तितलियाँ रख
दे
खुशी की इन किताबों में उमगती तितलियाँ रख दे
भले तू आज सीने पे हमारे बर्छियाँ रख दे
सदा बेनूरियत के ही यहाँ फानूस टँगते हैं
हमारे तू ठिकानों पे जरा रंगीनियाँ रख दे
हमारे इन लबों पे रख जरा सी मुसकुराहट ही
जबानों पर जरा कुछ और तीखी मिर्चियाँ रख दे
हमारे भी भरें घर जो खुशी की चहचहाहट से
झरोखों में परिंदों का कहीं पर आशियाँ रख दे
कभी जो पास आएँ तो अजब सी हो खुशी मन में
जरा से फ़ासले भी तो हमारे दरमियाँ रख दे
जरूरी तो नहीं मेरी हमेशा हो जुबाँ शीरीं
कभी लहजे में भी मेरे जरा सी तुर्शियाँ रख दे
कोई मायूस होके दर से मेरे जाय ना खाली
बरक्कत काम में मेरे जरा अल्लाह मियाँ रख दे
तरोताजा हवाएँ और कुछ पाकीजा हो जाएँ
अगरदानी के दिल में खुश्बुओं वाला धुआँ रख दे
वो सच ही हों हमारी थी नहीं ये जिद जरा-सी भी
भले-से ही लगें चाहे भले झूठे बयाँ रख दे
वो बच्चे हैं बहलना जानते हैं छोटी चीजों से
खिलौना नाम रखके इमलियों का ही चियाँ रख दे
१ फरवरी २०२२ |