अनुभूति में
पंकज परिमल
की रचनाएँ—
अंजुमन में-
इक किताब
झोंका छुए कोई
तितलियाँ रख दे
नहीं होता
रूठ जाता है
गीतों में—
आज जहाँ रेतीले तट हैं
आज लिखने दो मुझे कविता
इस जीवन में
काँटे गले धँसे
कागा कंकर चुन
जड़ का मान बढ़ा
जितना जितना मुस्काए
पत्र खोलो
रस से भेंट हुई
सपना सपना |
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इक किताब
जस्तःजस्तः ही सही, हमने पढ़ी थी इक किताब
मुद्दतों से अपनी नजरों में चढ़ी थी इक किताब
मिट गए हैं हर्फ़ उसके धुलके तेरे अश्क से
तेरे तकिए के बगल में जो पड़ी थी इक किताब
हमने उसको पाके भी अपनी जहालत कम न की
सीख के अनमोल मोती से जड़ी थी इक किताब
हमने उसको आँखों से चूमा यूँ पहले फिर पढ़ा
यों किसी पाकीजगी से भी मढ़ी थी इक किताब
उस अधूरे किस्से की भी रूह अब तो जुड़ गई
यों किसी अफसाने की खोई कड़ी थी इक किताब
१ फरवरी २०२२ |