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अनुभूति में पंकज परिमल की रचनाएँ

अंजुमन में-
इक किताब
झोंका छुए कोई
तितलियाँ रख दे
नहीं होता
रूठ जाता है

गीतों में—
आज जहाँ रेतीले तट हैं 
आज लिखने दो मुझे कविता
इस जीवन में
काँटे गले धँसे
कागा कंकर चुन
जड़ का मान बढ़ा
जितना जितना मुस्काए
पत्र खोलो
रस से भेंट हुई
सपना सपना

रूठ जाता है

कभी राहू कभी केतू शनीचर रूठ जाता है
जरा सी देर में मेरा मुकद्दर रूठ जाता है

मिली है सीख ये सह लूँ गमों को मुस्करा कर मैं
जरा सा मुस्कुरा लूँ तो सितमगर रूठ जाता है

तवज्जो की उसे दरकार है मुझसे अकेले ही
नदी से बात कर लूँ तो समंदर रूठ जाता है

सुकूँ के चार पल होते न पाँवों को कभी हासिल
अगर पाजेब खुश हो तो महावर रूठ जाता है

हमारे दिल के जख्मों पे तुम्हारे बोल का मरहम
हमेशा जख्म को आधा सुखाकर रूठ जाता है

फ़क़त बेचैन रातें दर्ज हैं अपने मुकद्दर में
ये मौसम प्यार का चाहत जगाकर रूठ जाता है

१ फरवरी २०२२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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