अनुभूति में
पंकज परिमल
की रचनाएँ—
अंजुमन में-
इक किताब
झोंका छुए कोई
तितलियाँ रख दे
नहीं होता
रूठ जाता है
गीतों में—
आज जहाँ रेतीले तट हैं
आज लिखने दो मुझे कविता
इस जीवन में
काँटे गले धँसे
कागा कंकर चुन
जड़ का मान बढ़ा
जितना जितना मुस्काए
पत्र खोलो
रस से भेंट हुई
सपना सपना |
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जड़ का मान बढ़ा
काले पत्थर पर सेंदुर
का
जितना लेप चढ़ा
चेतनता के हाथों जड़ का
उतना मान बढ़ा
चाँदी की आँखें चुप-चुप हैं
गरिमामयी हुई
बिना पसीजे ही उनकी छब
करुणामयी हुई
उनके पैरों झुकी प्रार्थना
गंधिल फूल सड़ा
मेरी अरज सुनें,
पहले ही
घंटे घनकारे
अपना तिमिर भुला उनके दर
दीपक उजियारे
पूजा-परसादी लाए बिन
क्यूँ मैं रहा खड़ा
१६ मार्च २०१५ |