अनुभूति में
पंकज परिमल
की रचनाएँ—
अंजुमन में-
इक किताब
झोंका छुए कोई
तितलियाँ रख दे
नहीं होता
रूठ जाता है
गीतों में—
आज जहाँ रेतीले तट हैं
आज लिखने दो मुझे कविता
इस जीवन में
काँटे गले धँसे
कागा कंकर चुन
जड़ का मान बढ़ा
जितना जितना मुस्काए
पत्र खोलो
रस से भेंट हुई
सपना सपना |
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आज लिखने दो
मुझे कविता
ठूँठ पर कुछ फुनगियाँ
हैं नई
आज लिखने दो मुझे कविता
कुछ नमी में
कुछ अँधेरे में
कुकुरमुत्ता सर उठाता है
नष्ट भाषा-
व्याकरण वाला
गीत अब आँखें दिखाता है
शाम रँगने लग रही सुरमई
आज गाने दो मुझे कविता
इक टिटहरी
बोल जाने क्या
किस दिशा में भाग जाती है
धौंकनी-सी
हाँफती है वो
जो निराले स्वर उठाती है
लोग तो पढ़-पढ़ मरे सतसई
आज पढ़ने दो मुझे कविता
भाव स्वर्णिम
राग भी अरुणिम
किन्तु कागज़ हो गए काले
ये दुमहले
हैं रुपहले भी
पर सधे इनमें मकड़जाले
अश्व कल तक ढूँढ लेगा जई
आज जीने दो मुझे कविता
गीत हाँफा है
ग़ज़ल सोई
जागती है रात-दिन क्षणिका
माल मुक्तक के
पिरो लाया
खो गई अनुराग की मणिका
पान की ही पीक से कत्थई
आज होने दो मुझे कविता
कौन जाने
किस घड़ी बोलें
ठाठ की भी हाट में उल्लू
श्राद्ध-तर्पण
मैं करूँ किसका
हाथ ले जल,बाँधकर चुल्लू
हो न काँधे पर कभी मिरजई
आज तनने दो मुझे कविता
१६ मार्च २०१५ |