अनुभूति में
पंकज परिमल
की रचनाएँ—
अंजुमन में-
इक किताब
झोंका छुए कोई
तितलियाँ रख दे
नहीं होता
रूठ जाता है
गीतों में—
आज जहाँ रेतीले तट हैं
आज लिखने दो मुझे कविता
इस जीवन में
काँटे गले धँसे
कागा कंकर चुन
जड़ का मान बढ़ा
जितना जितना मुस्काए
पत्र खोलो
रस से भेंट हुई
सपना सपना |
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पत्र खोलो
आज की है डाक में
ये तह किया इक पत्र,
खोलो
गोंद है संकोच का मुख पर
भला वह कब छुटेगा
देख कर फाड़ो किनारों से
नहीं तो ख़त फटेगा
भेदती हर आँख से
थोड़ा छिपाकर पत्र
खोलो
ध्यान देना मत लिखावट पर
न भाषा-व्याकरण पर
पढ़ सको तो पढ़ो
क्या लिक्खा हुआ अंतःकरण पर
ग़ैर के हाथों पड़े ना
यह तुम्हारा पत्र
खोलो
रेख जो तिरछी खिंची है
हो न उसकी दृष्टि तिरछी
आज मरहम दे रही वो याद
जो थी तीक्ष्ण बरछी
कब लिखा होगा न जाने
आज पहुँचा पत्र
खोलो
१६ मार्च २०१५ |