अनुभूति में
पंकज परिमल
की रचनाएँ—
अंजुमन में-
इक किताब
झोंका छुए कोई
तितलियाँ रख दे
नहीं होता
रूठ जाता है
गीतों में—
आज जहाँ रेतीले तट हैं
आज लिखने दो मुझे कविता
इस जीवन में
काँटे गले धँसे
कागा कंकर चुन
जड़ का मान बढ़ा
जितना जितना मुस्काए
पत्र खोलो
रस से भेंट हुई
सपना सपना |
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कागा कंकर चुन
पानी थोड़ा
घड़ा बड़ा है
कागा ! कंकर चुन
आवश्यकता बहुत बड़ी है
सीमित हैं साधन
क्यों बादल की करें प्रतीक्षा
वर्षा का चिंतन
प्यास बुझे कि न बुझे
गले को तो करना है तर
धूप इसे भी सुखा न डाले
बैठा मत सिर धुन
कोयल के अंडे भी तुझको
सेने ही तो हैं
अपने डैनों के संरक्षण
देने ही तो हैं
बोझ उठाना
उन बेगानी संतानों का भी
जो पल-बढ़कर गिनने लगतीं
तेरे ही अवगुन
अपना आदर मृत पितरों तक
कर अब तुही वहन
इसी स्वार्थ से तेरा आदर
कर्कश शब्द सहन
झूठे आश्वासन
चोंचों पर सोना मढ़ने के
पत्थर खाकर भी स्वभाववश
अब तू बाँच सगुन
१६ मार्च २०१५ |