अनुभूति में
पंकज परिमल
की रचनाएँ—
अंजुमन में-
इक किताब
झोंका छुए कोई
तितलियाँ रख दे
नहीं होता
रूठ जाता है
गीतों में—
आज जहाँ रेतीले तट हैं
आज लिखने दो मुझे कविता
इस जीवन में
काँटे गले धँसे
कागा कंकर चुन
जड़ का मान बढ़ा
जितना जितना मुस्काए
पत्र खोलो
रस से भेंट हुई
सपना सपना |
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जितना-जितना
मुस्काए
जितना-जितना मुस्काए हम
उतनी झरी व्यथा
जितने सुख
संघवाए उतने और दरिद्र हुए
तागे थे मज़बूत सिवन के ज़्यादा छिद्र हुए
और हो गई सघन वेदना
जितनी कही कथा
उपवासों से
हुई अलंकृत भूख महान हुई
उपहासों की किलकिल गूँजी नींद हराम हुई
उस पथ पर चलने की विद्या
हमको नहीं पता
१ सितंबर २०१४ |