अनुभूति में
पंकज परिमल
की रचनाएँ—
अंजुमन में-
इक किताब
झोंका छुए कोई
तितलियाँ रख दे
नहीं होता
रूठ जाता है
गीतों में—
आज जहाँ रेतीले तट हैं
आज लिखने दो मुझे कविता
इस जीवन में
काँटे गले धँसे
कागा कंकर चुन
जड़ का मान बढ़ा
जितना जितना मुस्काए
पत्र खोलो
रस से भेंट हुई
सपना सपना |
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झोंका छुए
कोई
लगे गर्मी कभी ठंडक भरा झोंका छुए कोई
कभी ठोकर लगे या इश्क का मौका छुए कोई
कोई सुकरात होठों से लगा इज्जत उसे बख्शे
जहर ये सोचता इक रोज तो मीरा छुए कोई
तमन्ना है कि इसके पहले गुल-सा खिल के झड़ जाएँ
हमें तितली छुए कोई कि या बच्चा छुए कोई
हमें ता-उम्र क्या सुननी पड़ेंगी तल्ख आवाजें
तमन्ना है लवों को कान के बाजा छुए कोई
वो जिसमें प्यार कम हो और कसमें-वायदे ज्यादा
नहीं हम चाहते हैं आपसी रिश्ता छुए कोई
मिले हो बाद मुद्दत के तो ये अपनी भी ख्वाहिश है
हमारे कानों को झिड़की छुए ताना छुए कोई
हमारे रुख से है तेरे लबों की दूरियाँ ज्यादा
ये क्या कम है हमें अहसास का बोसा छुए कोई
बता देंगे सभी अल्फ़ाज अपना मानी-ओ-मक्सद
जो तेरा हाथ हौले से कभी पन्ना छुए कोई
जरूरी क्या है हम दें सबके ही हाथों में आईना
जरूरी तो है अपना अक्स भी शीशा छुए कोई
लिख गया
वो मेरे हिस्से में अपनी मेहरबानी लिख गया
और मेरी आँख के हिस्से में पानी लिख गया
अपनी दुनिया में मुझे मेहमान का दर्जा दिया
गम मेरे हिस्से में अपनी मेजबानी लिख गया
खोल में अपने रहा सिकुड़ा हुआ, सिमटा हुआ
वक्त मेरी पीठ पे अपनी कहानी लिख गया
जी रहा हूँ सिर्फ किस्तें ही चुकाने के लिये
आज का बाजार कैसा मालपानी लिख गया
तय न कर पाया कि मैं इस मसलए पर क्या कहूँ
वो मुझे चुप पाके मुझको खानदानी लिख गया
१ फरवरी २०२२ |