मेरा मन
मेरे मन में चलती रहती
उठा-पटक
किसके हाथों की कठपुतली
बने जगत में रहते हैं
किसके एक इशारे पर हम
काल-चक्र में बहते हैं
इन सारे प्रश्नों के उत्तर
रहे भटक!
चोर-लुटेरों के हाथों में
राम-नाम की माला है
भोले-भाले भक्तों को
अपने साँचों में ढाला है
पोल खुली तो देखो कैसे
गये सटक!
ईश्वर तेरी दुनिया में
मिट्टी-पानी सब बिकता है
सपनों को भी बेच सके
वो शख्स यहाँ पर टिकता है
बेच रहे सब अपनी चीजें
मटक-मटक!
चील झपट्टा मार रही है
बगुले घात लगा बैठे
बनिया मन में सोच रहा
निर्धन का धन कैसे ऐंठे
छोटी-सी मछली को पल में
गये गटक!
२० जुलाई २०१५
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