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भूख गरीबी
लाचारी है
भूख गरीबी लाचारी है
रोज़ नई मारा-मारी है
रिश्वत लेने औ’देने की
हमको जैसे बीमारी है
रूपयों के दम पर ही चलती
फाइल आखिर सरकारी है
बिन पंखों के वो उड़ लेते
खूब फ़लक से की यारी है
दर्द छुपाना औ’हँसना भी
खेल नहीं है फ़नकारी है
अपने मक़सद को पाने की
आज हमारी तैयारी है
महल बचे, झोंपड़ियाँ टूटीं
इस मौसम की बलिहारी है
१३ अप्रैल २०१५
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