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अँधेरा घना
है
नहीं है उजाला, अँधेरा घना है
कुटिल भावनाओं से जीवन सना है!
गरीबों ने जब-जब
स्वयं को उठाया
अमीरों ने गुर्रा के
गुस्सा दिखाया
गरीबी का पल-पल
तमाशा बना है!
हुई क्लांत देखो
अहर्निश दिशाएँ
कहीं गूँजती हैं न
वैदिक ऋचाएँ
नये का पुराने से
अब सामना है!
दिशाहीन मानव
भटकने लगा है
सभी नींद में हैं
न कोई जगा है
कहाँ हैं खड़े हम,
हमें जानना है!
सजा कर बिसातें
जमे हैं सटोरे
निगलने को सब कुछ
विकल हैं चटोरे
दिशा आक्रमण की
तुरत भाँपना है!
बहन-बेटियाँ गेह
दुबकी पड़ी हैं
दुशासन की सेनाएँ
पग-पग खड़ी हैं
कहाँ तक गिरे हम,
हमें मापना है!
२० जुलाई २०१५
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