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मौसम बदल गया
खोने-पाने के हिसाब में
जीवन निकल गया!
गाँव हुए अब खाली-खाली
मौन हो गये कोयल-कागा
बगल दबाये झोला-टंटा
सारा गाँव शहर को भागा
रिश्ते-नातों को लालच का
अजगर निगल गया!
देख सुबह की रोनी सूरत
चिड़ियों के चेहरे कुम्हलाये
दूर उड़ानें भरने को वे
तत्पर थीं डैने फैलाये
कुहरे ने ढक दिया गगन को,
मौसम बदल गया!
कहीं त्रिभुज के कोण बने हैं
कहीं शून्य में भटक रहे हैं
खींच लकीरें गुणा-भाग की
अपनों को ही झटक रहे हैं
संबंधों का महल मोम-सा
पल में पिघल गया!
पहन मुखौटे तरह-तरह के
युग के रावण घूम रहे हैं
लूट अस्मिता बालाओं की
मद में कैसे झूम रहे हैं
देख घिनौना चेहरा जग का
मन ये दहल गया!
२० जुलाई २०१५
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