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अनुभूति में मालिनी गौतम की रचनाएँ-

गीतों में-
अँधेरा घना है
अपना मन झकझोर
बदली बदली सी है सूरत
मेरा मन
मौसम बदल गया
रूप अनोखे

अंजुमन में-
कभी आँखे दिखाते हो
ख्वाब आँखों में
चाय की कुछ चुस्कियों में
दफ्न कर अपनी तमन्ना
भूख गरीबी लाचारी है

 

मौसम बदल गया

खोने-पाने के हिसाब में
जीवन निकल गया!

गाँव हुए अब खाली-खाली
मौन हो गये कोयल-कागा
बगल दबाये झोला-टंटा
सारा गाँव शहर को भागा

रिश्ते-नातों को लालच का
अजगर निगल गया!

देख सुबह की रोनी सूरत
चिड़ियों के चेहरे कुम्हलाये
दूर उड़ानें भरने को वे
तत्पर थीं डैने फैलाये

कुहरे ने ढक दिया गगन को,
मौसम बदल गया!

कहीं त्रिभुज के कोण बने हैं
कहीं शून्य में भटक रहे हैं
खींच लकीरें गुणा-भाग की
अपनों को ही झटक रहे हैं

संबंधों का महल मोम-सा
पल में पिघल गया!

पहन मुखौटे तरह-तरह के
युग के रावण घूम रहे हैं
लूट अस्मिता बालाओं की
मद में कैसे झूम रहे हैं

देख घिनौना चेहरा जग का
मन ये दहल गया!

२० जुलाई २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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