बदली-बदली सी
है सूरत
कोयल तू अब क्यों है गाती
किसको अपना गीत सुनाती
आमों के झुरमुट के पीछे
नहीं जमा हुड़दंगी टोली
जीवन की आपा-धापी में
बिछड़ गये हैं सब हमजोली
उजड़ी-उजड़ी सी अमराई
मुझे न फूटी आँख सुहाती
बालकनी के इन गमलों में
कब कोई कचनार पला है
कंकरीट के इस जंगल में
महुए का मन कब मचला है
बदली-बदली सी यह सूरत
दादा-दादी को न लुभाती!
सुर बंसी के लुप्त हुए हैं
भूल गये घुँघरू खनकाना
कान फोड़ कर्कश आवाजें
यही आजकल का है गाना
इन टूटे-फूटे शब्दों में
व्यथा ह्रदय की कहाँ समाती!
नहीं प्रेम के रंग यहाँ हैं
राधा की चुनरी है कोरी
कान्हा तेरी कुंज-गलिन में
हुई आज फागुन की चोरी
फीके-फीके इन रंगों से
रंगोली किस द्वार सजाती!
२० जुलाई २०१५
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