|
कभी आँखें
दिखाते हो
कभी आँखें दिखाते हो कभी ख़ंजर चलाते हो
गरीबों पर बताओ इस तरह क्यों जुल्म ढाते हो
तुम्हारे कारखानों में हैं मरते लोग आये दिन
तुम उनकी मौत पर आँसू मगरमच्छी बहाते हो
रखोगे कैद कब तक रौशनी को अपने महलों में
उजालों को भी तुम अपना-पराया क्यों सिखाते हो
दवा-दारू, मिठाई, तेल-घी की छोड़ दो बातें
मुहब्बत में भी तुम तो ज़हर नफरत का मिलाते हो
पढ़ाते पाठ लोगों को सचाई और नेकी का
स्वयं बाजार में ईमान की बोली लगाते हो
वो चीखें जो उड़ा देतीं तुम्हारी नींद रातों की
उन्हें गूँगा बनाने का हुनर क्यों आजमाते हो
१३ अप्रैल २०१५
|