ख्वाब आँखों
में
ख़्वाब आँखों में मेरी इक घर बनाने लग गये
चाँद-तारे भी उतर कर झिलमिलाने लग गये
रोशनी से घर सजाना जिन दियों का काम था
वे हवा का साथ पाकर घर जलाने लग गये
कुछ क़दम तो चल दिये इक दूसरे को थाम कर
वो हमें और हम उन्हें फिर आज़माने लग गये
राह में जो कल तलक पलकें बिछाये थे खड़े
स्वार्थ जब पूरा हुआ नज़रें चुराने लग गये
थे किये वादे उन्होंने हाथ दोनों जोड़ कर
पर मिली जैसे ही सत्ता भाव खाने लग गये
कुछ क़दम तक साथ देकर चल दिये वो छोड़कर
उनकी यादों को भुलाने में ज़माने लग गये
सर्द बर्फीली हवाओं ने जिन्हें कुचला कभी
गुनगुनाती धूप में वो सिर उठाने लग गये
१३ अप्रैल २०१५
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