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अनुभूति में माधव कौशिक की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आने वाले वक्त का
घर का शोर-शराबा
समझ से बाहर है
हँसने का, हँसाने का हुनर

गीतों में-
चलो उजाला ढूँढें
टूटता संवाद देखा
पसरा हुआ विराम
संबंधों की बही
सागर रेत हुए
सूरज के सब घोड़े
क्षितिज की ओर

 

सूरज के सब घोड़े

दौड़ गए विपरीत दिशा में
सूरज के सब घोड़े

पानी की पगडंडी पर जब
लोग चले बालू के
अंधी अंधियारी रातों में
भाव चढ़े जुगनू के
तितली के पंखों ने झेले
काँटों भरे हथौड़े

बुझे दीयों से रोज आरती
करते रहे शिवाले
मस्जिद के गुंबद पर फैले
असमंजस के ताले
क्या जाने कब घर लौटेंगे
आखिरकार भगोड़े

गँवई गँवार गाँव की गलियाँ
पंचों की महतारी
पोखर वाले हर बरगद की
गरदन पर है आरी
अपराधी सी चौपालों ने
खाए सबके कोड़े

२८ मार्च २०११

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