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अनुभूति में माधव कौशिक की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आने वाले वक्त का
घर का शोर-शराबा
समझ से बाहर है
हँसने का, हँसाने का हुनर

गीतों में-
चलो उजाला ढूँढें
टूटता संवाद देखा
पसरा हुआ विराम
संबंधों की बही
सागर रेत हुए
सूरज के सब घोड़े
क्षितिज की ओर

 

क्षितिज की ओर

एक अनजाने
क्षितिज की ओर अपने पाँव हैं

रिस रहा है रक्त तलुवों से
मगर गतिमान हैं हम
आने वाले सत्य से
परिचित नहीं
अनजान हैं हम
धूप में झुलसी हुई
पेड़ों की घायल छाँव है

साँस लेने की इजाज़त भी
नहीं देता समय अब
जाने अपने दर्द को
अनुभव करेगा
आसमाँ कब
अब न कोई ठौर
अपनी अब न कोई ठाँव है

रो रही हैं खेत की मेड़ें
मगर खामोश अंबर
मूक दर्शक से
खड़े हैं
पेड़ पौधे
रेत के घर
गाँव की चौपाल
अंधी और बहरा गाँव है

२८ मार्च २०११

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