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अनुभूति में माधव कौशिक की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आने वाले वक्त का
घर का शोर-शराबा
समझ से बाहर है
हँसने का, हँसाने का हुनर

गीतों में-
चलो उजाला ढूँढें
टूटता संवाद देखा
पसरा हुआ विराम
संबंधों की बही
सागर रेत हुए
सूरज के सब घोड़े
क्षितिज की ओर

 

हँसने का, हँसाने का हुनर

हँसने का, हँसाने का हुनर ढूँढ रहे हैं
हम लोग दुआओं में असर ढूँढ रहे हैं।

अब कोई हमें ठीक ठिकाने तो लगाये,
घर में हैं मगर अपना ही घर ढूँढ रहे हैं।

क्या जाने किसी रात के सीने में छिपी हो
सूरज की तरह हम भी सहर ढूँढ रहे हैं।

जब पाँव सलामत थे तो रस्ते में पड़े थे
अब पाँव नहीं हैं तो सफर ढूँढ रहे हैं।

हालात बिगड़ने की नई मंजिलें देखो
सुकरात के हिस्से का जहर ढूँढ रहे हैं।

कुछ लोग अभी तक भी अँधेरे में खड़े हैं
कुछ चाय के प्यालों में गदर ढूँढ रहे हैं।

२२ जुलाई २०१३

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