अनुभूति में
माधव कौशिक की रचनाएँ-
अंजुमन में-
आने वाले वक्त का
घर का शोर-शराबा
समझ से बाहर है
हँसने का, हँसाने का हुनर
गीतों में-
चलो उजाला ढूँढें
टूटता संवाद देखा
पसरा हुआ विराम
संबंधों की बही
सागर रेत हुए
सूरज के सब घोड़े
क्षितिज की ओर |
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समझ से बाहर है
कुदरत का हर घात समझ से बाहर है
सागर पर बरसात समझ से बाहर है
सदियाँ बीत गईं हैं दुनिया बसे हुए
फिर भी आदमजात समझ से बाहर है
फूलों से नाजुक लोगों के जीवन में
काँटों की सौगात समझ से बाहर है
‘सत्यमेव-जयते’ सब कहते हैं लेकिन
सच्चाई की मात समझ से बाहर है
जिसे देखिए, वही ठोकरें खाता है
दिन में आधी रात समझ से बाहर है
बड़ी-बड़ी बातों की तह में उतरेंगे
पर छोटी सी बात समझ से बाहर है
२२ जुलाई २०१३ |