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अनुभूति में माधव कौशिक की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आने वाले वक्त का
घर का शोर-शराबा
समझ से बाहर है
हँसने का, हँसाने का हुनर

गीतों में-
चलो उजाला ढूँढें
टूटता संवाद देखा
पसरा हुआ विराम
संबंधों की बही
सागर रेत हुए
सूरज के सब घोड़े
क्षितिज की ओर

 

सागर रेत हुए

सरिता सूखी मन की
सागर रेत हुए

दुनियावी ढर्रे
पर कब दुनिया चलती है
धूप खड़ी हो सिर पर तब छाया ढलती है
उलटफेर होते ही कुछ गणनाओं में
हँसते गाते लोग
अचानक प्रेत हुए

पाँव काटकर
दिये तभी कुछ कोस चले
हाथ नहीं मल पाए कितने हाथ मले
यही सत्य है हर पीढ़ी दर पीढ़ी का
खेतिहर खेतों की
खातिर खेत हुए

२८ मार्च २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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