अनुभूति में
माधव कौशिक की रचनाएँ-
अंजुमन में-
आने वाले वक्त का
घर का शोर-शराबा
समझ से बाहर है
हँसने का, हँसाने का हुनर
गीतों में-
चलो उजाला ढूँढें
टूटता संवाद देखा
पसरा हुआ विराम
संबंधों की बही
सागर रेत हुए
सूरज के सब घोड़े
क्षितिज की ओर |
|
घर का शोर-शराबा
घर का शोर-शराबा खुद के कुछ इतना बेजार हुआ
धीरे-धीरे सन्नाटा भी मरने को तैयार हुआ।
जिसने गुलशन के कोनों में छिप के आग लगाई थी
आज नहीं सारे फूलों की खुशबू का हकदार हुआ।
बाजारू माहौल घरों के अन्दर जब से आया है
दिल का हर प्यारा सा रिश्ता सचमुच काँटेदार हुआ।
अपने सीने पर वैसे भी कब तक पत्थर रख कर जीता
शबनम का हर कतरा इस दिल लाल, सुर्ख अंगार हुआ।
तुमने खैर-खबर पूछी है, चलो बता ही देता हूँ
जीने की तो बात ही क्या है मरना भी दुश्वार हुआ।
२२ जुलाई २०१३ |