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अनुभूति में देवेन्द्र शर्मा इंद्र की रचनाएँ-

अंजुमन में-
फूल शाखों से
यूँ देर से
हर इक रिश्ते
हर शाम चिरागों सा

गीतों में-
अब भी जीवित मुझमें
उस शहर से
एक गाथा का समापन
जब जब भी झंझा
मैं तुम्हारी लेखनी हूँ

मैं नवांतर
मैं शिखर पर हूँ
लौटकर घर चलो खुसरो
साँझ के कंधे पर
हम जीवन के महाकाव्य

 

हर इक रिश्ते

हर इक रिश्ते- को झटके में तोड़ सकता हूँ
तेरे इशारे पे सबको मैं छोड़ सकता हूँ

बिखर गये हैं जो रेशे सभी मरासिम के
मैं उनको प्यार के धागे से जोड़ सकता हूँ

तवक्को जीने की अब और किसलिए मैं करूँ
क़लाई मौत की चाहूँ मरोड़ सकता हूँ

तू मेरी राह में अब भी जो हमसफ़र हो जाय
क़दम जो बहक गये उनको मोड़ सकता हूँ

गुलों की ख़शबू ने पहना लिबास शो'लों का
मैं उसके ज़ख्म पे शबनम निचोड़ सकता हूँ

घरौंदे खेल में मैंने रचे जो हाथों से
उन्हें मैं पॉँव की ठोकर से तोड़ सकता हूँ

न दे, तू क़द के बराबर मुझे न दे चादर
ठिठुरते जिस्म को अपने सिकोड़ सकता हूँ

५ जुलाई २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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