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अनुभूति में देवेन्द्र शर्मा इंद्र की रचनाएँ-

नए गीतों में-
मैं शिखर पर हूँ

साँझ के कंधे पर

गीतों में-
अब भी जीवित मुझमें
उस शहर से
एक गाथा का समापन
जब जब भी झंझा
मैं तुम्हारी लेखनी हूँ

मैं नवांतर
लौटकर घर चलो खुसरो
हम जीवन के महाकाव्य


 
हम जीवन के महाकाव्य

हम जीवन के महाकाव्य है
केवल छंद प्रसंग नहीं हैं।

कंकड़-पत्थऱ की धरती है
अपने तो पाँवों के नीचे
हम कब कहते बंधु! बिछाओ
स्वागत में मखमली गलीचे

रेती पर जो चित्र बनाती
ऐसी रंग-तरंग नहीं है।

तुमको रास नहीं आ पाई
क्यों अजातशत्रुता हमारी
छिप-छिपकर जो करते रहते
शीतयुद्ध की तुम तैयारी

हम भाड़े के सैनिक लेकर
लड़ते कोई जंग नहीं है।

कहते-कहते हमें मसीहा
तुम लटका देते सलीब पर
हँसे तुम्हारी कूटनीति पर
कुढ़ें या कि अपने नसीब पर

भीतर-भीतर से जो पोले
हम वे ढोल-मृदंग नहीं है।

तुम सामूहिक बहिष्कार की
मित्र!! भले योजना बनाओ
जहाँ-जहाँ पर लिखा हुआ है
नाम हमारा, उसे मिटाओ

जिसकी डोरी हाथ तुम्हारे
हम वह कटी पतंग नहीं है।

७ सितंबर २००९

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