हम जीवन के
महाकाव्य हम जीवन के
महाकाव्य है
केवल छंद प्रसंग नहीं हैं।
कंकड़-पत्थऱ की धरती है
अपने तो पाँवों के नीचे
हम कब कहते बंधु! बिछाओ
स्वागत में मखमली गलीचे
रेती पर जो चित्र बनाती
ऐसी रंग-तरंग नहीं है।
तुमको रास नहीं आ पाई
क्यों अजातशत्रुता हमारी
छिप-छिपकर जो करते रहते
शीतयुद्ध की तुम तैयारी
हम भाड़े के सैनिक लेकर
लड़ते कोई जंग नहीं है।
कहते-कहते हमें मसीहा
तुम लटका देते सलीब पर
हँसे तुम्हारी कूटनीति पर
कुढ़ें या कि अपने नसीब पर
भीतर-भीतर से जो पोले
हम वे ढोल-मृदंग नहीं है।
तुम सामूहिक बहिष्कार की
मित्र!! भले योजना बनाओ
जहाँ-जहाँ पर लिखा हुआ है
नाम हमारा, उसे मिटाओ
जिसकी डोरी हाथ तुम्हारे
हम वह कटी पतंग नहीं है।
७ सितंबर २००९ |