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अनुभूति में देवेन्द्र शर्मा इंद्र की रचनाएँ-

नए गीतों में-
मैं शिखर पर हूँ

साँझ के कंधे पर

गीतों में-
अब भी जीवित मुझमें
उस शहर से
एक गाथा का समापन
जब जब भी झंझा
मैं तुम्हारी लेखनी हूँ

मैं नवांतर
लौटकर घर चलो खुसरो
हम जीवन के महाकाव्य

  मैं शिखर पर हूँ

घाटियों में खोजिए मत
मैं शिखर पर हूँ

धुएँ की
पगडंडियों को
बहुत पीछे छोड़ आया हूँ
रोशनी के राजपथ पर
गीत का रथ मोड़
आया हूँ
मैं नहीं भटका
रहा चलता निरंतर हूँ।

लाल-
पीली उठीं लपटें
लग रही है आग जंगल में
आरियाँ उगने लगी हैं
आम, बरगद, और
पीपल में
मैं झुलसती रेत पर
रसवंत निर्झर हूँ

साँझ ढलते
पश्चिमी नभ के
जलधि में डूब जाऊँगा
सूर्य हूँ मैं जुगनुओं की
चित्र----लिपि----में
जगमगाऊँगा
अनकही अभिव्यक्ति का मैं
स्वर अनश्वर हूँ

८ फरवरी २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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