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अनुभूति में देवेन्द्र शर्मा इंद्र की रचनाएँ-

नए गीतों में-
मैं शिखर पर हूँ

साँझ के कंधे पर

गीतों में-
अब भी जीवित मुझमें
उस शहर से
एक गाथा का समापन
जब जब भी झंझा
मैं तुम्हारी लेखनी हूँ

मैं नवांतर
लौटकर घर चलो खुसरो
हम जीवन के महाकाव्य

  अब भी जीवित मुझमें

अब भी जीवित मुझमें
ऋषियों की परंपरा
धूप-दीप-तुलसी दल
अक्षत-नैवेद्य भरा
मंद-मंद मुक्त छंद
मंत्रवती
गंगा की
धारा पर बहता हूँ दोना वटपत्र का!

फिर उदास संध्या के
देकर कुछ अनुभव
गहमा-गहमी वाला
बीत गया उत्सव
अब विद्वत् परिषद में
मैं ही हूँ
एक शेष
अनगाया विदा-गीत इस अंतिम सत्र का!

उलट गए कंचन घट
था जिनमें सुधा-सोम
चरु-सुरभित समिधाएँ
सब कुछ हो गया होम
अभिमंत्रित
अग्नि-चूड़
मंद्र-मलय, धूम्र-वलय
साक्षी है परम-व्योम खंडित नक्षत्र का!

अब न यहाँ आएँगी
गायत्री किन्नरियाँ
घन केशों में गूँथे
नव रसाल-मंजरियाँ
क्या मुझे सहेजोगे
चंदन की
थाली में
एक बिंदु हूँ ऋतु के गंधित-मधुछत्र का!

७ सितंबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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