मैं नवांतर
मैं न कोई पथ-प्रदर्शक
मैं न अनुचर हूँ!
साथ रहकर भी, सभी के
मैं समांतर हूँ!
नाद हूँ मैं, प्रणव हूँ मैं
शून्य हूँ मैं, मैं न चुकता
कालयात्री हूँ, स्थविर हूँ
मैं न चलता, मैं न रुकता
आदि-अंत-विहीन हूँ मैं
मैं निरंतर हूँ!
मैं सृजन का हूँ अनुष्टुप
लय-प्रलय के गान मुझे में
रत्न-मणि मुक्ता धरे
डूबे हुए जलयान मुझमें
ज्वार-भाटों से भरा
अतलांत प्रांतर हूँ!
मैं नहीं हूँ दिव्यधन्वा
निष्कवच सैनिक विरथ हूँ
व्यूह-वलयित समर-जेता
मैं किसी इति का न अथ हूँ
मैं न सत्तापक्ष में हूँ
मैं समांतर हूँ!
मैं अंधेरे की शिला पर
ज्योति के अक्षर बनाता
मुझे परिभाषित करो मत
मैं स्वयं अपना प्रमाता
गीत हूँ, नवगीत हूँ मैं
मैं नवांतर हूँ!
७ सितंबर २००९ |