अनुभूति में
बृजनाथ श्रीवास्तव
की रचनाएँ-
नये गीतों में-
अन्धी सुरंगों में
अरी निदाघे
जेठ का महीना
दादी की अब आँख भरी
हम कहाँ कहाँ चूके
छंदमुक्त में-
कवि नहीं हो सकते
नौकरीशुदा औरतें
मार्गदर्शक
मेरे लिए कलम
रोटी
गीतों में-
अलकापुरी की नींद टूटे
इसी शहर मे खोया
गंध बाँटते डोलो
पहले
जैसा
प्रेमचंद जी
बुलबुल के घर
ये शहर तो
सगुनपंछी
सुनो
राजन
होंठ होंठ मुस्काएँगे
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हम कहाँ-कहाँ
चूके
मेघ फटे माया नगरी मे जिये गॉव ने सूखे
हम कहाँ-कहाँ चूके
पंडित,मुल्ला, शेर,बकरियाँ फँसे एक ही राह
मेघराज की वक्र भृकुटि से मायानगर तबाह
काल चक्र मे धनकुबेर भी
रहे कई दिन भूखे
बिन पानी मुरझाए देखो ताल,कुएँ,वन,खेत
बडे फाट की नदी बिलानी हिमगिरि के संकेत
वायुयान से लौट रहे है
छूकर मेघ बिजूके
मॉग-मॉग कर हार गये कुछ बिन मॉगे जलदान
कुछ बाढो से कुछ सूखे से इन्द्र जिये अभिमान
लोक ज्ञान की ढफली पर हम
गिरि सागर तक कूके
१ मई २०२४
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