अनुभूति में
बृजनाथ श्रीवास्तव
की रचनाएँ-
नये गीतों में-
अलकापुरी की नींद टूटे
पहले
जैसा
प्रेमचंद जी
ये शहर तो
सुनो
राजन
गीतों में-
इसी शहर मे खोया
गंध बाँटते डोलो
बुलबुल के घर
सगुनपंछी
होंठ होंठ मुस्काएँगे
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गन्ध बाँटते
डोलो
नई सुबह है खोलो दरवाजे
बन्द खिड़कियाँ खोलो
भरी उमस में
कुछ बयार को अन्दर भी तो आने दो अन्दर वाली सड़ी
हवा अब बाहर को उड़ जाने दो
कुंठाओं की गर्म साँस में फिर
नेह हिमानी घोलो
कभी कभी बुद्ध ने
साँकल तो खड़कायी थी
वर्षों की ठीक जंग लगी थोड़ी सी हिल पायी थी
अभी समय है
नव डिटर्जेण्ट से
रगड़-रगड़ कर धोलो
बस्ती में अब अपनेपन की
हँसी लौटने दो भाई
शीतल छाया की भेद
रहित
फिर फलने दो अमराई
गलियों द्वारे मधुर प्यार की प्रिय
गन्ध बाँटते डोलो
१७ फरवरी २०१४
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