अनुभूति में
बृजनाथ श्रीवास्तव
की रचनाएँ-
नये गीतों में-
अलकापुरी की नींद टूटे
पहले
जैसा
प्रेमचंद जी
ये शहर तो
सुनो
राजन
गीतों में-
इसी शहर मे खोया
गंध बाँटते डोलो
बुलबुल के घर
सगुनपंछी
होंठ होंठ मुस्काएँगे
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पहले जैसा
हॉ अनादि!
अब कहॉ रहा जुग
पहले जैसा
पहले घर.घर आम्र मंजरी
की पूजा करते थे
एक पेड की शाखे जैसी
सब मिलकर रहते थे
हॉएअनादि!
अब कहॉ बगीचा
पहले जैसा
पहले वाली हवा बसंती
हुई आज जहरीली
गंगाजल की जगह सभी ने
देखो मदिरा पी ली
नेम.धरम
की जगह जरूरत
केवल पैसा
२२ दिसंबर २०१४
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