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अनुभूति में बृजनाथ श्रीवास्तव की रचनाएँ-

नये गीतों में-
अलकापुरी की नींद टूटे
पहले जैसा
प्रेमचंद जी
ये शहर तो

सुनो राजन

गीतों में-
इसी शहर मे खोया
गंध बाँटते डोलो
बुलबुल के घर
सगुनपंछी
होंठ होंठ मुस्काएँगे

 

बुलबुल के घर

बुलबुल के घर बाजों के डेरे
लौटे फिर नये सबेरे

कल तय हुए
मसौदे जो दरबारों में
आये छपकर सुबह-सुबह अखबारों में
नई हवा के लगने फिर फेरे
लौटे फिर नये सबेरे

अधजागे,
अधसोये सबने हाँ कर दी
आगे वही हुआ जो राजा की मरजी
मजबूत हुए बाजों के घेरे
लौटे फिर नये सबेरे

सूरज की
नंगी तल वारें धार चढ़ीं
सेनाएँ हाथों में पकड़े तेज बढ़ीं
बुलबुल सहमी किसको अब टेरे
लौटे फिर नये सबेरे

१७ फरवरी २०१४

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