अनुभूति में
बृजनाथ श्रीवास्तव
की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
कवि नहीं हो सकते
नौकरीशुदा औरतें
मार्गदर्शक
मेरे लिए कलम
रोटी
गीतों में-
अलकापुरी की नींद टूटे
इसी शहर मे खोया
गंध बाँटते डोलो
पहले
जैसा
प्रेमचंद जी
बुलबुल के घर
ये शहर तो
सगुनपंछी
सुनो
राजन
होंठ होंठ मुस्काएँगे
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मार्गदर्शक
यह तो अच्छा हुआ
कि धर्मराज को
राह बताने वाला कुत्ता था
कोई नेता नहीं था
नहीं तो अपने दल की
खूबियाँ बताते-बताते
शेष राह भुला देता
वह कोई
धर्मोपदेशक नहीं था
नहीं तो
परलोक सुधरवाने के चक्कर में
इह लोक की भी राह भुला देता
वह कोई
भूमाफिया नहीं था
नहीं तो
गुण्डों, पुलिस और
सरकारी तंत्र के बल पर
स्वर्ग के रास्ते में पड़ने वाले
पार्कों, राहों,स्कूलों, मंदिरों, खेतों
तालों, नदियों के साथ साथ
स्वर्ग भी कब्जा कर लेता
और बेंच देता
गनीमत यही रही
कि धर्मराज के दिन अच्छे थे
मुसीबत में राह बताने वाला
आदमी नहीं था
बल्कि...बल्कि
एक कुत्ता था
१ नवंबर २०२२
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