अनुभूति में
बृजनाथ श्रीवास्तव
की रचनाएँ-
नये गीतों में-
अन्धी सुरंगों में
अरी निदाघे
जेठ का महीना
दादी की अब आँख भरी
हम कहाँ कहाँ चूके
छंदमुक्त में-
कवि नहीं हो सकते
नौकरीशुदा औरतें
मार्गदर्शक
मेरे लिए कलम
रोटी
गीतों में-
अलकापुरी की नींद टूटे
इसी शहर मे खोया
गंध बाँटते डोलो
पहले
जैसा
प्रेमचंद जी
बुलबुल के घर
ये शहर तो
सगुनपंछी
सुनो
राजन
होंठ होंठ मुस्काएँगे
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अरी निदाघे !
सुबह कंचनी दुपहर गोरी और साँवली शाम
अरी निदाघे!लगे तुम्हारे
बड़े सलोने नाम
प्रात चहक कर सभी दिशाएँ गाएँ तुम्हारे गीत
धूप नहाकर करने लगती छाया के संग प्रीत
सन्ध्या होते मदिर पवन भी
घूमे बन ख्य्याम
कीर कोकिला वन अमराई उत्सव मंगल गान
महुआ टपके गेहूँ फूले भरे हुए खलिहान
धूप तपिश की ओढ़ चूनरी
ताक रही घनश्याम
गोधूली मे गाय रंभाती आती अपने गाँव
लौट रहे है अस्ताचल से पाँखी अपने ठाँव
कौन-कौन पल बीत चुके है
जान न पाया नाम
१ मई २०२४
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