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अनुभूति में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की रचनाएँ-


कविताओं में-
अंधेरे का मुसाफ़िर
एक सूनी नाव
तुम्हारे लिए
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट
रात में वर्षा
व्यंग्य मत बोलो
विवशता
शुभकामनाएँ
सब कुछ कह लेने के बाद
सुरों के सहारे

संकलन में-
वसंती हवा- आए महंत वसंत
गाँव में अलाव - जाड़े की धूप
पिता की तस्वीर- दिवंगत पिता के प्रति
नया साल- शुभकामनाएँ

क्षणिकाओं में
वसंत समर्पण आश्रय

  सुरों के सहारे
(कुमारगंधर्व का गायन सुनते हुए)

दूर दूर तक
सोयी पड़ी थीं पहाड़ियाँ
अचानक टीले करवट बदलने लगे
जैसे नींद में उठ चलने लगे।
एक अदृश्य विराट हाथ बादलों-सा बढ़ा
पत्थरों को निचोड़ने लगा
निर्झर फूट पड़े
फिर घूम कर सबकुछ रेगिस्तान में बदल गया

शांत धरती से
अचानक आकाश चूमते
धूल भरे बवंडर उठे
फिर रंगीन किरणों में बदल
धरती पर बरस कर शांत हो गए।

तभी किसी
बांस के वन में आग लग गई
पीली लपटें उठने लगीं
फिर धीरे-धीरे हरी होकर
पत्तियों से लिपट गईं।
पूरा वन असंख्य बाँसुरियों में बज उठा
पत्तियाँ नाच-नाच कर
पेड़ों से अलग हो
हरे तोते बन उड़ गईं।

लेकिन भीतर कहीं बहुत गहरे
शाखों में फँसा
बेचैन छटपटाता रहा
एक बारहसिंहा

सारा जंगल काँपता हिलता रहा
लो वह मुक्त हो
चौकड़ी भरता
शून्य में विलीन हो गया
जो धमनियों से
अनंत तक फैला हुआ है।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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