वसंत राग
पेड़ों के साथ साथ हिलता है सिर यह मौसम अब नहीं आये गा फिर
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
आश्रय
नरम घास पर टूट गिरी सूखी टहनी मैने तुम्हारी गोद में अपना मुँह छिपा लिया
समर्पण
घास की एक पत्ती के सम्मुख मैं झुक गया और मैने पाया कि मैं आकाश छू रहा हूँ
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