अनुभूति में
राम निवास मानव की रचनाएँ-
नए हाइकु-
देखे जो छवि
कुंडलियों में-
हुई दर्दशा मंच की
हाइकु में-
जग सुरंग
नेता नरेश
बहरे पंच
मेरा जीवन
दोहों में-
कलजुगी दोहे
जीवन का नेपथ्य
महफ़िल थी इंसान की
राजनीति के दोहे
रिश्तों में है रिक्तता
सूख गई संवेदना
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जीवन का नेपथ्य
सीता-सी संवेदना, व्याकुल और उदास।
मन वैरागी राम-सा, जीवन है वनवास॥
बिकने को तैयार है, जिनका आज चरित्रा।
छपता है अख़बार में, अब उनका ही चित्रा॥
पुलिस-विफलता से बढ़ा, जब-जब भी जनरोष।
मुठभेड़ों के नाम पर, मरे कई निर्दोष॥
कुत्ता खाये पूरियाँ, बिल्ली खाये खीर।
मगर दुष्ट के द्वार पे, भूखा मरे फ़क़ीर॥
जो अंधे, मतिमंद हैं, बहरे दोनों कान।
अधरों पर उनके मिली, एक इंच मुस्कान॥
अब ऐसी-कुछ हो गई, दुनिया की तासीर।
दो ही खुश हैं अब यहाँ, पागल और फ़क़ीर॥
भुतहा-भुतहा वक्त है, सहमी-सहमी आग।
सन्नाटों के दौर में, कैसा जीवन-राग॥
धूल-धुआँ खुशियाँ हुई, पीर हुई अख़बार।
सुर्ख़ी सुर्ख़ अभाव की, बाँचें कितनी बार॥
जब-जब भी पर्दा उठा, दिखा अधूरा सत्य।
अनदेखा ही रह गया, जीवन का नेपथ्य॥
वही पालकी देश की, जनता वही कहार।
लोकतन्त्रा के नाम पर, बदले सिर्फ़ सवार॥
लहराने नेता लगे, बजी चुनावी बीन।
सत्ता के सुर-ताल पर, होता नहीं यक़ीन॥
१३ अप्रैल २००९ |