देखे जो छवि (हाइकु)
१
देखे जो छवि
जड़ में चेतन की,
वही तो कवि।
२
सौन्दर्य-तीर्थ
लगे त्रिभुवन का
मुझको धरा।
३
नभ में इन्दु
माँ के माथे का शुभ
सुन्दर बिन्दु।
४
गोधूलि वेला,
लगा क्षितिज पर
रंगों का मेला।
५
फागुनी धूप,
ज्यों अभिसारिका का
दिपता रूप।
६
आया बसन्त,
बनी-ठनी-सी कली
कहाँ है कन्त?
७
खिली शेफ़ाली,
लगती वैशाली की
नगर-वधू।
८
पूछे तितली
परिभाषा प्रेम की,
फूल-फूल से।
९
लिया-ही-लिया
प्रकृति से हमने,
माँ जो ठहरी।
१०
दुनिया सारी
बाँधे आँखों पे पट्टी,
बनी गांधारी।
११
रावण जीता,
आज भी अपहृत
सच की सीता।
१२
कौरव-कंस
मिलते घर-घर,
दंश-ही-दंश।
८ फरवरी २०१० |