अनुभूति में
राम निवास मानव की रचनाएँ-
नए हाइकु-
देखे जो छवि
कुंडलियों में-
हुई दर्दशा मंच की
हाइकु में-
जग सुरंग
नेता नरेश
बहरे पंच
मेरा जीवन
दोहों में-
कलजुगी दोहे
जीवन का नेपथ्य
महफ़िल थी इंसान की
राजनीति के दोहे
रिश्तों में है रिक्तता
सूख गई संवेदना
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जग सुरंग
जग सुरंग
है देह का पिंजरा,
प्राण विहंग।
धार्मिक ग्रन्थ
दिखला कहाँ पाए
सत्य का पन्थ!
अब तो छोड़ो
ये मन्दिर-मस्जिद,
दिलों को जोड़ो।
तरसाती है,
इच्छा स्वर्णमृग-सी
भरमाती है।
पाट वक्त का,
पीसे जौ-गेहूँ-मक्की,
जीवन चक्की।
कर्म की पूंजी
और भाग्य का खाता,
लिखे विधाता।
क़िस्मत सारी;
कोई तो है बन्दर,
कोई मदारी।
पर्दा उठाओ,
जारी रहे नाटक,
पर्दा गिराओ।
फूल औ' काँटे,
चुन-चुन सबको
उसी ने बाँटे।
बूँद से पानी,
नदी, फिर सागर,
यही कहानी।
समझा कौन!
वेद-पुराण-गीता,
सभी तो मौन।
तेरा-न-मेरा,
दुनिया है केवल
रैन-बसेरा।
२७ जुलाई २००९ |