अनुभूति में
तेजेंद्र शर्मा की रचनाएँ—
नई रचनाएँ-
ठोस सन्नाटा
नफ़रत का बीज बोया
मज़ा मुख्यधारा
का
मैल
शीशे के बने लोग
अंजुमन में--
इस उमर में दोस्तों
कैसे कह दूँ
ज़िन्दगी को मज़ाक में लेकर
तो लिखा जाता है
मेरी मजबूर
सी यादों को
मैं जानता था
कविताओं में--
आदमी की ज़ात बने
पुतला ग़लतियों का
प्रजा झुलसती है
मकड़ी बुन रही है जाल
शैरी ब्लेयर
हिंदी की दूकानें
संकलन में—
दिये जलाओ–कहाँ
हैं राम |
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तो लिखा जाता है
दिल में जब दर्द जगा हो,
तो लिखा जाता है,
घाव सीने पे लगा हो, तो लिखा जाता है.
ख़ुशी के दौर में लब गुनगुना ही लेते हैं
ग़म 'ए' फ़ुरक़त में भी गाओ, तो लिखा जाता है
हाल-ए-दिल खोल के रखना, तो बहुत आसां है
हाल-ए-दिल दिल में छुपा हो, तो लिखा जाता है
अपनी खुद्दारी पे हम, लाख करें नाज़ ऐ दोस्त
अपनी हस्ती को मिटाओ, तो लिखा जाता है
गैर अपनों को बनाना, भी कोई होगा हुनर
ग़ैरों को अपनी बनाओ, तो लिखा जाता है
बनी तस्वीर जो टूटे, तो गम तो होता है
टूटी तस्वीर बनाओ, तो लिखा जाता है
यूं तो इक रोज फ़ना, सबने ही होना है यहां
जान का दांव लगाओ, तो लिखा जाता है
लोग फिरते हैं यहां, पहने ख़ुदाई जामा
ख़ुद को इन्सान बनाओ, तो लिखा जाता है
२१ जनवरी
२००८
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