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अंजुमन में--
इस उमर में दोस्तों
कैसे कह दूँ
ज़िन्दगी को मज़ाक में लेकर

तो लिखा जाता है
मेरी मजबूर सी यादों को

मैं जानता था

कविताओं में--
आदमी की ज़ात बने
पुतला ग़लतियों का
प्रजा झुलसती है
मकड़ी बुन रही है जाल
शैरी ब्लेयर
हिंदी की दूकानें 

संकलन में—
दिये जलाओ–कहाँ हैं राम

 

इस उमर में दोस्तों

इस उमर में दोस्तों, शैतान बहकाने लगा
जब रहे न नोश के काबिल, मज़ा आने लगा

जिस ज़माने ने किये सिजदे, हमारे नाम पर
आज हम पर वो ज़माना, कहर है ढाने लगा

जब दफ़न माज़ी को करने की करें हम कोशिशें
ज़हन में उतना उभर कर सामने आने लगा .

ज़िन्दगी भर जिन की ख़ातिर हम गुनाह ढोते रहे
उनकी ख़ुदगर्ज़ी पे दिल, अब तरस है खाने लगा .

चार सू जिनको कभी राहों में ठुकराते रहे
राह का हर एक पत्थर हमको ठुकराने लगा .

ज़िंदगी के तौर ही बेतौर जब होने लगे
तब हमें हर तौर दोबारा, समझ आने लगा

‘तेज’ चक्कर वक्त का यूं ही रवां रहता सदा
कल का वीराना यहाँ, गुलशन है बन जाने लगा

२१ जनवरी २००८  

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