अनुभूति में
तेजेंद्र शर्मा की रचनाएँ—
नई रचनाएँ-
ठोस सन्नाटा
नफ़रत का बीज बोया
मज़ा मुख्यधारा
का
मैल
शीशे के बने लोग
अंजुमन में--
इस उमर में दोस्तों
कैसे कह दूँ
ज़िन्दगी को मज़ाक में लेकर
तो लिखा जाता है
मेरी मजबूर
सी यादों को
मैं जानता था
कविताओं में--
आदमी की ज़ात बने
पुतला ग़लतियों का
प्रजा झुलसती है
मकड़ी बुन रही है जाल
शैरी ब्लेयर
हिंदी की दूकानें
संकलन में—
दिये जलाओ–कहाँ
हैं राम |
|
शीशे के बने लोग
शीशे के बने लोग
सँभल कर चलना होगा
छूना मत
तारा टूट कर धरती पर
लहु लुहान रिश्ते
शीशे के बने लोग।
तरेड़ आ जाती है
रिश्तों में तरेड़
रिश्तों में बवण्डर
मैं खोजता रह जाता हूं
सम्बन्धों के खण्डहर।
शीशे के बने लोग
रहते हैं
भवन में शीशे के।
नहीं समझते
हाड़ मांस का प्रेम
तरेड़ आ जाती है।
शीशे को छूने से बचना होगा
शीशा टूट जाएगा
उंगली से बहेगा गर्म लहू
रिश्तों की गर्माहट
बह जाएगी
और बचेंगी किरचें
बस किरचें !
१७ मई २०१० |