अनुभूति में
तेजेंद्र शर्मा की रचनाएँ—
नई रचनाएँ-
ठोस सन्नाटा
नफ़रत का बीज बोया
मज़ा मुख्यधारा
का
मैल
शीशे के बने लोग
अंजुमन में--
इस उमर में दोस्तों
कैसे कह दूँ
ज़िन्दगी को मज़ाक में लेकर
तो लिखा जाता है
मेरी मजबूर
सी यादों को
मैं जानता था
कविताओं में--
आदमी की ज़ात बने
पुतला ग़लतियों का
प्रजा झुलसती है
मकड़ी बुन रही है जाल
शैरी ब्लेयर
हिंदी की दूकानें
संकलन में—
दिये जलाओ–कहाँ
हैं राम |
|
मज़ा मुख्यधारा
का
क्यों आसानी से
समझ आ जाते हो
जानते नहीं
वही होता है महान
जिसे समझने में
बीत जाता है एक जीवन।
आसान आदमी
आसान कविता
आसान कहानी
आसान फ़िल्म
आसान ज़िन्दगी
कौन करता है परवाह
ज़रूरी है
सीधी बात का टेढ़ा लगना
वक्रता कसौटी है
गुणवत्ता की
बात आ जाए समझ
तो काहे की बात?
आसानी प्रतीक है
छोटेपन की ग़रीबी की।
उठो कुछ इस तरह
कहो कुछ इस तरह
लगे कि कह रहे हो
बात वज़नदार, शानदार
चाहे कहने को न हो कुछ
यही तो मज़ा है
मुख्यधारा का।
१७ मई २०१० |