अनुभूति में
तेजेंद्र शर्मा की रचनाएँ—
नई रचनाएँ-
ठोस सन्नाटा
नफ़रत का बीज बोया
मज़ा मुख्यधारा
का
मैल
शीशे के बने लोग
अंजुमन में--
इस उमर में दोस्तों
कैसे कह दूँ
ज़िन्दगी को मज़ाक में लेकर
तो लिखा जाता है
मेरी मजबूर
सी यादों को
मैं जानता था
कविताओं में--
आदमी की ज़ात बने
पुतला ग़लतियों का
प्रजा झुलसती है
मकड़ी बुन रही है जाल
शैरी ब्लेयर
हिंदी की दूकानें
संकलन में—
दिये जलाओ–कहाँ
हैं राम |
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आदमी की जात बने
हरेक शख्स को है
प्यार अपने नग़मों से
यहाँ किसी के लिए वाह कौन कहता है;
वो शख्स जिसको गुमां है कि वो ही बेहतर है
अकेला काँच के घर में ही बंद रहता है।
कोई कहे मैं बाएँ हाथ से ही लिखूँगा
मेरे सफ़ों पे तो मजदूर या किसां होंगे;
मुझे तो भूख या गर्दिश से सिर्फ निस्बत है
जहाँ के दर्द मेरे हऱ्फ में अयां होंगे।
कोई है और भी जो प्रेम का पुजारी है
कहे कि चाह में उसकी सदा मैं गाऊँगा;
मेरा हबीब ही मेरा ख़ुदा है सब जानें
उसी की याद में दिन रात मैं बिताऊँगा।
किसी को प्यार है कुदरत के हर नज़ारे से
ज़मीं से, चांद से, सूरज से हर सितारे से;
कलम से उसके नई बात जब निकलती है
मचल के मिलती है हर मौज तब किनारे से।
कि मैं ही मैं हूँ, चलो सोच ऐसी दफ़न करें
हरिक को दाद मिले और कोई बात बने;
फ़िदा जो अपने पे होना हमारा छूटे तो
विवाद ख़त्म हो, और आदमी की जात बने। |