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ठोस सन्नाटा
नफ़रत का बीज बोया

मज़ा मुख्यधारा का
मैल
शीशे के बने लोग

अंजुमन में--
इस उमर में दोस्तों
कैसे कह दूँ
ज़िन्दगी को मज़ाक में लेकर

तो लिखा जाता है
मेरी मजबूर सी यादों को
मैं जानता था

कविताओं में--
आदमी की ज़ात बने
पुतला ग़लतियों का
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मकड़ी बुन रही है जाल
शैरी ब्लेयर
हिंदी की दूकानें 

संकलन में—
दिये जलाओ–कहाँ हैं राम

 

ठोस सन्नाटा

हाँ घर में अँधेरा है
दीवार सा ठोस सन्नाटा
आवाज़ टकराती है
वापिस चली आती है।

अरुण पश्चिम को छोड़
पूर्व की ओर चल दिया है
ऐसा भी होता है कभी
मगर हुआ है, ऐसा ही।

दीप्ति अरुण की अकेली है
यश मिलेगा कैसे
दूरियों के अर्थ क्या हैं
अंधेरों की रौशनी डराती है।

नियंत्रण छूटता जाता है
केंद्र कमज़ोर पड़ता जाता है
नहीं चला पाता हूँ पटरी पर
जीवन की रेल बहुत टेढ़ी है।

सावन को रोक नहीं पाओगे
उसको आना है आ ही जायेगा
सूखा जो ज़िन्दगी में फैला है
फूल उसमें वही खिलायेगा।

१७ मई २०१०

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