शंकर का वरदपुत्र
शत शत कांटे सब सिर
माथे
दंश व्यथा हर बार पी गया
मैं शंकर का वरद पुत्र बन
गरल पात्र एक साथ पी गया
गिरने पर हँसने वालों का
इतना ही प्रतिकार किया है
गहन वेदना होने पर भी
हर पीड़ा चुपचाप पी गया
मेरे आँसू पी जाने को
भले कहो कायरता मेरी
ये बहता दुनिया बह जाती
रुकने से आधार दे गया
पीड़ा पीड़ा की औषधि बन
जीवन को सुखसार दे गया
पतझड़ ही सूखे बिरवे को
कोमल किसलय हार दे गया। |